उत्तक संवर्धन क्या है | संवर्धन माध्यम | प्रकार | Utak Samvardhan Kya Hai

Utak Samvardhan Kya Hai : प्रिय मित्रों आज हम आपको उत्तक संवर्धन के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में उत्तक संवर्धन क्या है, संवर्धन माध्यम, संवर्धन के प्रकार, नेत्र की कार्यविधि, उत्तक संवर्धन की तकनीक उपलब्धियां, सूक्ष्म प्रवर्धन इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Utak Samvardhan Kya Hai की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा। 

हमारा यह लेख कक्षा 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Tissue Culture In Hindi लिखा है।

Utak Samvardhan Kya Hai In Hindi


उत्तक संवर्धन क्या है :- किसी पादप के प्रोटोप्लास्ट कोशिका उत्तक अंग आदि को निर्जलीकृत एवं नियंत्रित अवस्थाओं में संवर्धन माध्यम पर संवर्धित करने की प्रक्रिया संवर्धन कहलाती है। 

अथवा

उत्तक को निर्जलीकृत संवर्धन है माध्यम पर संवर्धित करने की प्रक्रिया उत्तक संवर्धन कहलाती है। 

हिबरलैंड ने सर्वप्रथम 1902 में उत्तक संवर्धन के बारे में बताया। 

उत्तक संवर्धन में संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य :- ऐसा पोषक माध्यम जिस का रासायनिक संगठन ज्ञात हो जिसका उपयोग संवर्धन अथवा उत्तक संवर्धन में किया जाता है। 

  • कतोतक :- पादप के विभाग जिनका उपयोग है उत्तक संवर्धन हेतु किया जाता है। कतोतक कहलाते हैं। जैसे कोशिका, उत्तक कलिका, बीज, जड़ इत्यादि। 
  • केलस :- संवर्धन माध्यम पर नव संवर्धित विभेदित अथवा असंगठित कोशिकाओं का समूह कैलस कहलाता है। 
  • प्रोटोप्लास्ट :- कोशिका भित्ति रहीत पादप कोशिका को प्रोटोप्लास्ट कहा जाता है। 
  • निर्जलीकरण :- सूक्ष्म जीवों को नष्ट करने अथवा समूल उन्मूलन करने की प्रक्रिया निर्जलीकरण कही जाती है। 
  • कृत्रिम बीज :- संपुरिकरत या का एक भरण को संश्लेषित बीज या कृत्रिम बीज कहा जाता है। 
  • सूक्ष्म प्रवर्धन :- पादप उत्तक संवर्धन विधि या तकनीक द्वारा पादप प्राप्त करने की प्रक्रिया सूक्ष्म प्रवर्धन कहलाती है। जिसमें अल्प समय में भी अत्यधिक संख्या में पादप प्राप्त किए जा सकते हैं। 

पादप उत्तक संवर्धन के क्षेत्र में विभिन्न खोज एवं कार्य :- पादप उत्तक संवर्धन के क्षेत्र में निम्न खोज एवं कार्य हैं। 

  • हिबरलैंड ने सर्वप्रथम 1902 में उत्तक संवर्धन के बारे में बताया। 
  • रोबिल्स एवम् कोटे ने 1922 में मूल शीर्ष का प्रथम सफल संवर्धन किया। 
  • F.W. Went ने 1926 में ऑक्सिन हार्मोन की खोज की। 
  • मुराशिग व स्कुग मिशन 1962 में संवर्धन हेतु संवर्धन माध्यम M. S. मीडियम की खोज की।
  • महेश्वरी एवं गुहा मुखर्जी ने धतूरे के पराग कणों का संवर्धन करके अगुणित पादप प्राप्त किए।  
  • ई बोल ने सन 1946 में प्ररोह शीर्ष संवर्धन द्वारा संपूर्ण पादप क्लीन का विकास किया। 
  • W. H. मूर ने एकल कोशिका संवर्धन तकनीक की खोज की। 
  • जिमेलचर्स एवं उनके सहयोगियों द्वारा आलू तथा टमाटर के प्रोटोप्लास्ट के संलयन द्धारा कायिक संकर प्रोमेटो का निर्माण किया। 

संवर्धन माध्यम :- वह कृत्रिम माध्यम जिसमें पादप कोशिकाओं उत्तक अंगों तथा संपूर्ण तंत्र को संवर्धित करते है। संवर्धन माध्यम कहलाता है। 

संवर्धन माध्यम तरल अथवा अर्द्ध ठोस हो सकता है। मुख्य रूप से मुरासिंग एवं स्वकुला द्वारा निर्मित एमएस माध्यम संवर्धन माध्यम का सर्वाधिक प्रयोग किया जाता है। 

संवर्धन माध्यम में संवर्धन हेतु सभी आवश्यक पोषक तत्व पाए जाते हैं। संवर्धन माध्यम प्रयोगशाला में कृत्रिम पादप निर्माण में किया जाता है। 

सूक्ष्म प्रवर्धन :- उत्तक संवर्धन तकनीक द्वारा उत्तक लेकर कम समय में अत्यधिक संख्या में पादप निर्माण की प्रक्रिया को सूक्ष्म प्रवर्धन कहते हैं। 

सूक्ष्म प्रवर्धन के चरण :- सूक्ष्म प्रवर्धन प्रक्रिया के निम्न चरण हैं। 

  • क्तोतक का चयन एवं पूर्व उपचार
  • कतोतक का सतही निर्जलीकरण
  • कतोतक संवर्धन एवं कैलश निर्माण
  • संवर्धन का नए पोषक माध्यम पर स्थानांतरण
  • संपूर्ण पादप का निर्माण अथवा पुनरुदभव
  • निर्मित पादपों का अनुकूलन
Utak Samvardhan Kya Hai

Utak Samvardhan Ke Prakar


संवर्धन के प्रकार :- उद्देश्य के आधार पर संवर्धन निम्न प्रकार के होते हैं। 

  • केलस संवर्धन :- संवर्धन माध्यम पर नव संवर्धित विभेदित अथवा असंगठित कोशिकाओं का समूह कैलस कहलाता है। 
  • अंग संवर्धन :- किसी भी पादप के विभिन्न अंगों जैसे जड़ पत्ती तना आदि को संवर्धन माध्यम पर संवर्धित कर के संपूर्ण पादप को विकसित करना अंग संवर्धन कहलाता है। 
  • भ्रूण संवर्धन :- जब पौधों के अपरिपक्व भ्रूण अथवा परिपक्व भ्रूण को संवर्धित किया जाता है। इसे भ्रूण संवर्धन कहा जाता है। इसका उपयोग पर्याय अल्प विकसित भ्रूण को बचाने अथवा दुर्लभ पादपों के विकास करने हेतु किया जाता है। 
  • पराग कोष तथा परागण संवर्धन :- इस प्रकार का संवर्धन अगुणित पादप प्राप्त करने हेतु किया जाता है। इसके अंतर्गत पराग कोष अथवा पराग कणों का संवर्धन माध्यम पर संवर्धन किया जाता है। इसके अंतर्गत भारत में गुहा मुखर्जी तथा महेश्वरी ने सन 1964 में धतूरे के पराग कोष एवं पराग कणों के संवर्धन द्वारा अगुणित पादप प्राप्त किए। 
  • कोशिका निलंबन संवर्धन :- तरल संवर्धन माध्यम में कोशिकाओं के संवर्धन को निलंबन संवर्धन कहते हैं। इस तकनीक का उपयोग द्वितीय उपापचय के संश्लेषण हेतु किया जाता है। 
  • प्रोटोप्लास्ट संवर्धन :- जब किसी पादप कोशिका की भीति को हटाकर प्राप्त किए गए प्रोटोप्लास्ट का संवर्धन किया जाता है। तो इसे प्रोटोप्लास्ट कल्चर कहा जाता है। इसके अंतर्गत प्रोटोप्लास्ट को सर्वप्रथम तरल संवर्धन माध्यम पर उसके बाद अर्द्ध ठोस संवर्धन माध्यम पर संवर्धित करके पादपों का निर्माण किया जाता है। 

Utak Samvardhan Ke Upyog


पादप उत्तक संवर्धन की तकनीक उपलब्धियां एवं उपयोग :- पादप उत्तक संवर्धन की निम्न तकनीक है। 

  • सूक्ष्म प्रवर्धन द्वारा :- प्राकृतिक रूप से कायिक जनन करने वाले उपयोगी पौधों में शीघ्र गुणन द्वारा अत्यधिक उत्पादन किया जा सकता है। 
  • विषाणु मुक्त पादप प्राप्त करना :- पादप उत्तक संवर्धन द्वारा निर्जलित अवस्थाओं में किया जाता है। जिसके कारण ऐसे पादप प्राप्त किए जाते हैं। जिनमें विषाणु फाइटोप्लाजमा आदि का संक्रमण नहीं होता है। इस तकनीक द्वारा विषाणु मुक्त पादप के अंतर्गत आलू के वायरस मुक्त पौधे तैयार किए जा चुके हैं। 
  • संश्लेषित बीज :- पादप उत्तक संवर्धन द्वारा कायिक भ्रूण तैयार किए जाते हैं। अथवा इन कायिक भ्रूण या प्ररोह कालिकाओ या सोडियम अल्जीनेट अथवा कैल्शियम अल्जिनेट द्वारा संपुटित अथवा आवरित करके मोती के समान संरचना प्राप्त की जाती हैं। जिन्हें संश्लेषित बीज कहा जाता है। इन बीजों में पोषक पदार्थ हार्मोन प्रतिजैविक विद्यमान होते हैं। अतः इनका उपयोग सामान्य बीजों के समान किया जाता है। 
  • भ्रूण बचाव – जब संकरण द्वारा दो भिन्न-भिन्न जातियों से भ्रूण का निर्माण किया जाता है तो ऐसे दुर्लभ भ्रूण को बचाने हेतु उत्तक संवर्धन तकनीक का उपयोग किया जाता है। 
  • त्रि गुनित पादपों का उत्पादन :- उत्तक संवर्धन तकनीक द्वारा आवर्त बीजी पादपों में भ्रूण पोषण के संवर्धन द्वारा त्रिगुण पादप तैयार किए जाते हैं। 

उपरोक्त के अतिरिक्त कायिक संकरण जनन द्रव्य संरक्षण में उत्तक संवर्धन का उपयोग किया जाता है। 

पादपों में जीन स्थानांतरण की विधियां :- पादपों में जीन स्थानांतरण का अध्ययन करने हेतु दो प्रकार की विधियां मुख्य रूप से प्रचलित हैं। 

  • वाहक निर्देशित अथवा अप्रत्यक्ष विधियां :- इस प्रकार के जीन स्थानांतरण की स्थितियों में स्थानांतरित किए जाने वाले जीन अथवा डीएनए का स्थानांतरण किसी वाहक के माध्यम से किया जाता है। अर्थात प्रत्यक्ष नहीं किया जाता है। यह अप्रत्यक्ष जिनकी भी प्रमुख तीन विधियां हैं। 
  • एग्रोबेक्ट्रीयंस निर्देशित जीन स्थानांतरण विधि
  • विषाणु निर्देशित जीन स्थानांतरण विधि
  • इन प्लांटा तकनीक

एग्रोबेक्ट्रीयंस निर्देशित जीन स्थानांतरण विधि :- एग्रोबेक्ट्रीयंस एक जीवाणु प्रभेद है। जो पुनरयोग्यज डीएनए तकनीक में प्रयुक्त होता है। एग्रोबेक्ट्रीयंस में प्लाजिमेड में पाया जाता है। जो एक ट्यूमर प्रेरक प्लाजिम्ड है। जो द्विबीजपत्री पादपों को संक्रमित करता है। इसका उपयोग जीन स्थानांतरण हेतु किया जाता है। इसको प्राकृतिक अनुवांशिक अभियंता भी कहा जाता है। यह जीवाणु संक्रमित पादपों में अनियंत्रित कोशिका विभाजन प्रेरित करता है। जिसके कारण पादपों में ट्यूमर का निर्माण होता है। जिसे क्राउन गोल कहा जाता है। 

विषाणु निर्देशित जीन स्थानांतरण :- कुछ विषाणु समूह जैसे कॉल इमो विषाणु एवं जैमिनी विषाणु जिन स्थानांतरण के वाहक के रूप में कार्य करते हैं। यह विषाणु डीएनए अथवा जीन का स्थानांतरण अनुवांशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में करने के लिए उपयुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त रेट्रोवायरस लैटिनो वायरस है एवं एडिनोवायरस भी जीन स्थानांतरण में उपयोगी होते हैं। 

इन प्लांटा तकनीक :- जब अंकुरित बीजों को ग्रोबैक्टेरियम के साथ है संवर्धन माध्यम पर पदक प्राप्त किए जाते हैं तो निर्मित पादप में एग्रो बैक्टीरिया के संकरण द्वारा वांछित जींन सीधे ही प्रवेश कर जाते हैं। इसे इन प्लांटा तकनीक कहा जाता है   

जीन स्थानांतरण की प्रत्यक्ष विधियां :- जब जीन अथवा डीएनए का स्थानांतरण  वाहको के उपयोग के बिना किया जाता है तो इस विधि को जीन स्थानांतरण की प्रत्यक्ष विधि कहते हैं। 

अर्थात् इन विधियों में वाहक की आवश्यकता नहीं होती है। पादपों में प्रत्यक्ष जीन स्थानांतरण भी दो प्रकार की विधियों से होता है। 

  • रासायनिक विधियों द्वारा जीन स्थानांतरण :- कुछ रासायनिक पदार्थ जैसे ग्लाइकोल एल्कोहल कैल्शियम फास्फेट आदि के पादप के प्रोटोप्लास्ट में वांछित जीन अथवा डीएनए के प्रवेश को प्रेरित करते है। 
  • भौतिक विधियों द्वारा जीन स्थानांतरण :- पादपों में जीन स्थानांतरण हेतु निम्नलिखित भौतिक विधियां उपयोगी हैं। 

जीन गन विधि :- यह बंदूक के समान करने वाले भौतिक युक्ति है। जिसको कनिका बंदूक शॉट गन एवं माइक्रोप्रोजेक्टाइल के नाम से जाना जाता है। इस विधि में वांछित डीएनए से आवृत अथवा विलोपित सरवन अथवा टंगस्टन के सूक्ष्म कणों को प्रोजेक्टाइल की सहायता से उच्च वेग से लक्ष्य कोशिकाओं में दाग दिया जाता है।

जिससे श्रवण युक्त डीएनए कोशिका के अंदर प्रवेश कर जाता है। तथा पादप कोशिका के डीएनए से जुड़कर ट्रांसजेनिक डीएनए बनाता है। 

विद्युत छिद्रण विधि :- इस विधि में लक्ष्य प्रोटोप्लास्ट दो पादप कोशिकाओं अथवा ऊतकों को उच्च वोल्टता के विद्युत स्पंदन दिया जाता है। जिससे जीव द्रव्य कला में अस्थाई छिद्र बन जाते हैं। ऐसी विद्युत छिद्रन तकनीक कहते हैं।

इन छिद्रों के माध्यम से वांछित जीन अथवा डीएनए कोशिका में प्रवेश कर जाते हैं। तथा कोशिका के डीएनए के साथ समाकलित हो जाते है। 

यह भी पढ़ें –

पोषण किसे कहते है | पोषण के प्रकार | खनिज पोषण | Poshan Kise Kahate Hain

परागण क्या है | परागण के प्रकार | स्वपरागण | पर परागण | Pollination In Hindi

मानव नेत्र के बारे में संपूर्ण जानकारी तथा उसकी संरचना | Manav Netra

मानव कंकाल के बारे में संपूर्ण जानकारी तथा उसकी संरचना | Manav Kankal

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया Utak Samvardhan Kya Hai आपको पसंद आयी होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

Leave a Comment