सूरदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित | Surdas Ke Dohe

Surdas Ke Dohe :- प्रिय मित्रों आज हम आपको सूरदास जी के दोहे के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में सूरदास जी के दोहे, सूरदास जी के दोहे हिंदी अर्थ सहित, सूरदास के पद इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Surdas Ke Pad की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा। 

हमारा यह लेख के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Sur Ke Pad लिखा है।

Surdas Ke Dohe

Surdas Ke Dohe In Hindi


चरन कमल बन्दौ हरि राई
जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।
बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई
सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।

हिंदी अर्थ :- इस दोहे के माध्यम से सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण की प्रशंसा करते हुए कहते हैं कि जिस पर श्री कृष्ण की कृपा होती है वो सब कुछ कर जाता है। फिर कोई भी काम उसके लिए असंभव नहीं रहता है।

यदि श्री कृष्ण की कृपा किसी लंगड़े पर हो गई तो वो किसी भी बड़े से बड़ा पहाड़ भी लांघ सकता है और एक अन्धें पर हो जाती है तो वह इस सुंदर दुनिया को अपनी आँखों से देख सकता है।

जब भगवान श्री कृष्ण की कृपा होती है तो बहरे को सुनाई और गूंगे बोलने लग जाते हैं। कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं रहता। ऐसे करुण मय भगववान के पैरों में सूरदास बार बार नमन करता है।

मुखहिं बजावत बेनु धनि यह बृंदावन की रेनु।
नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु॥
मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन।
चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु॥
इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु।
सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु॥

हिंदी अर्थ :- सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण धन्य है जहां आप गायों को चराते हैं। और अधरों पर रखकर बांसुरी बजाते हैं। उसी भूमि पर याद करने से मन को शांति मिलती है।

सूरदास कहते है की अरे मन! तू क्यो इधर-उधर भटकता है। ब्रज में ही रह, जहां व्यावहारिकता से हटकर सुख मिलता है। यहां न किसी से लेना, न किसी को देना। सब ध्यानमग्न हो रहे हैं। ब्रज में रहते हुए ब्रजवासियों के जूठे बरतनों से जो कुछ प्राप्त हो उसी को ग्रहण करने से ब्रह्ममत्व की प्राप्ति होती हैं। सूरदास कहते हैं की ब्रजभूमि की समानता कामधेनु भी नहीं कर सकती। इस पद में सूरदास ने ब्रज भूमि का महत्व बताया है।

बूझत स्याम कौन तू गोरी।
कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥
काहे को हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।
सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥
तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥

हिंदी अर्थ :- राधा के प्रथम मिलन का इस पद में वर्णन किया है सूरदास जी ने। श्रीकृष्ण ने पूछा की हे गोरी! तुम कौन हो? कहां रहती हो? किसकी पुत्री हो?

हमने पहले कभी ब्रज की इन गलियों में तुम्हें नहीं देखा। तुम हमारे इस ब्रज में क्यों चली आई? अपने ही घर के आंगन में खेलती रहतीं। इतना सुनकर राधा बोली, मैं सुना करती थी की नंदजी का लड़का माखन चोरी करता फिरता हैं।

तब कृष्ण बोले, लेकिन तुम्हारा हम क्या चुरा लेंगे। अच्छा, हम मिलजुलकर खेलते हैं। सूरदास कहते हैं की इस प्रकार रसिक कृष्ण ने बातों ही बातों में भोली-भाली राधा को भरमा दिया।

सूरदास जी के पद


जसोदा हरि पालनै झुलावै।
हलरावै दुलरावै मल्हावै जोई सोई कछु गावै ।।
मेरे लाल को आउ निंदरिया कहे न आनि सुवावै ।
तू काहै नहि बेगहि आवै तोको कान्ह बुलावै ।।
कबहुँ पलक हरि मुंदी लेत है कबहु अधर फरकावै ।
सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै ।।
इही अंतर अकुलाई उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।
जो सुख सुर अमर मुनि दुर्लभ सो नंद भामिनि पावै ।।

हिंदी अर्थ :- सूरदास जी ने भगवान् बालकृष्ण की शयनावस्था का सुंदर चित्रण किया हैं। वह कहते हैं की मैया यशोदा श्रीकृष्ण को पालने में झुला रही है। कभी तो वह पालने को हल्कासा हिला देती हैं, कभी कन्हैया को प्यार करने लगती हैं और कभी चूमने लगती हैं।

ऐसा करते हुए जो मन में आता हैं वही गुनगुनाने भी लगती हैं। लेकिन कन्हैया को तब भी नींद नहीं आती हैं। इसलिए यशोदा नींद को उलाहना देती हैं की आरी निंदिया तू आकर मेरे लाल को सुलाती क्यों नहीं? तू शीघ्रता से क्यों नहीं आती? देख, तुझे कान्हा बुलाता हैं।

जब यशोदा निंदिया को उलाहना देती हैं तब श्रीकृष्ण कभी पलकें मूंद लेते हैं और कभी होठों को फड़काते हैं। जब कन्हैया ने नयन मूंदे तब यशोदा ने समझा की अब तो कान्हा सो ही गया हैं। तभी कुछ गोपियां वहां आई। गोपियों को देखकर यशोदा उन्हें संकेत से शांत रहने को कहती हैं।

इसी में श्रीकृष्ण पुन: कुनमुनाकर जाग गए। तब उन्हें सुलाने के उद्देश से पुन: मधुर मधुर लोरियां गाने लगीं। अंत में सूरदास नंद पत्नी यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए कहते है की सचमुच ही यशोदा बड़भागिनी हैं क्योंकि ऐसा सुख तो देवताओं और ऋषि-मुनियों को भी दुर्लभ है।

मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायौ
मोसौं कहत मोल कौ लीन्हौं, तू जसुमति कब जायौ।।
कहा करौन इहि के मारें खेलन हौं नहि जात
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तेरौ तात।।
गोरे नन्द जसोदा गोरीतू कत स्यामल गात
चुटकी दै-दै ग्वाला नचावत हँसत-सबै मुसकात।।
तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै
मोहन मुख रिस की ये बातैं, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही कौ धूत
सूर स्याम मौहिं गोधन की सौं, हौं माता तो पूत।।

हिंदी अर्थ :- सूरदास जी इस दोहे में श्री कृष्ण के और बलराम के बचपन का एक किस्सा बताते हैं। कहते हैं कि श्री कृष्ण यशोदा मैया के पास जाते है और बलराम की शिकायत करते हैं कि उन्हें दाऊ भैया यह कहकर खिझाते है कि तुमको यशोदा मैया कहीं बाहर से लेकर आई है। तुम्हे तो मोल भाव करके किया गया है। इस कारण मैं खेलने नहीं जा रहा हूं।

वे कहते कि यशोदा मैया और नंदबाबा तो गोरे रंग के है और तुम सांवले रंग के। तुम्हारे माता-पिता कौन हैं? इतना कहकर वो ग्वालों के साथ चले जाते हैं और उनके साथ खेलते व नाचते हैं। आप दाऊ भैया को तो कुछ नहीं कहती और मुझे मारती रहती हैं। श्री कृष्ण से ये सुनकर मैया यशोदा मन ही मन मुस्कुराती है। ये देख कृष्ण कहते हैं कि गाय माता की सौगंध खाओ कि मैं तेरा ही पुत्र हूं।

बूझत स्याम कौन तू गौरी,
कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी।
काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी,
सुनत रहति स्त्रवननि नन्द ढोता करत फिरत माखन दधि चोरी।।
तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।
सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी।।

हिंदी अर्थ :- इस दोहे में सुरदास जी कहते हैं कि श्री कृष्ण अपनी एक सखी से पूछते है और कहते हैं कि हमने तुम्हें पहले कभी ब्रज में नहीं देखा और तुम कौन हो? तुम्हारी माता कौन और कहां रहती हो? तुम्हारी बेटी हमारे साथ क्यों नहीं खेलने आती है?

श्री कृष्ण की इन बातों को सखी खड़ी होकर शांति से सुनती है। श्री कृष्ण कहते हैं कि हमें खेलने के लिए एक और सखी मिल गई है। भगवान श्री कृष्ण श्रृंगार रस के ज्ञाता है और वह श्रीकृष्ण और राधा की बातों को सुंदर तरीके से बताते हैं।

Surdas Ke Pad


मैया मोहि मैं नहि माखन खायौ,
भोर भयो गैयन के पाछे, मधुबन मोहि पठायो,
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो।।
मैं बालक बहियन को छोटो, छीको किही बिधि पायो,
ग्वाल बाल सब बैर पड़े है, बरबस मुख लपटायो।।
तू जननी मन की अति भोरी इनके कहें पतिआयो,
जिय तेरे कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो।।
यह लै अपनी लकुटी कमरिया, बहुतहिं नाच नचायों,
सूरदास तब बिहँसि जसोदा लै उर कंठ लगायो।।

हिंदी अर्थ :- बहुत ही प्रसिद्ध यह सूरदास का पद है। इस पद में सूरदासजी श्री कृष्ण की बाललीला का वर्णन करते हैं। कहते हैं कि श्री कृष्ण अपनी मैया से कहते हैं कि मैंने माखन नहीं खाया है। तुम तो मुझे सुबह होते ही गायों के पीछे भेज देती हो और दिन के चारों पहर भटकता हूं और साँझ को वापस आता हूं।

मैं तो छोटा सा बालक हूं। मेरी तो बाहें भी छोटी हैं। ये माखन के छींके तक पहुँचती भी नहीं। मेरे सभी मित्र मेरे से बैर रखते हैं। इसलिए उन्होंने मेरे मुंह पर माखन को लिपटा दिया है। तू मां बहुत ही भोली है। जो तुम इनकी बातों में आ गई। तेरे दिल में मेरे लिए कोई भेद जरूर हैं, जो तुम मुझे अपना नहीं समझती।

हमेशा पराया ही समझती है। तभी तो मेरे पर हमेशा संदेह करती है। ये ले तुम्हारी कम्बल और लाठी। तुमने मुझे बहुत ही परेशान किया है। यशोदा मैया का श्री कृष्ण की इन बातों ने मन मोह लिया। मैया यशोदा ने मुस्कुराते हुए श्री कृष्ण को गले लगा लिया।

अबिगत गति कछु कहति न आवै।
ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।।
परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै।
मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।
रूप रैख गुन जाति जुगति बिनु निरालंब मन चक्रत धावै।
सब बिधि अगम बिचारहिं तातों सूर सगुन लीला पदगावै।।

हिंदी अर्थ :- सूरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि कुछ बातें हमारे जीवन में इस प्रकार होती है कि हम उसे सिर्फ हमारा मन ही समझ सकता है। उसे कोई दूसरा नहीं समझ सकता। जैसे किसी गूंगे को यदि मिठाई खिला दी जाए, तो वह उसके स्वाद का वर्णन नहीं कर सकता। लेकिन उसके स्वाद को वह पूरी तरह जाता है।

उसी प्रकार निराकार ब्रम्हा इश्वर का ना कोई रूप होता है, ना गुण। उस जगह पर मन स्थिर नहीं हो सकता है। सूरदास जी कहते हैं उनको श्री कृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन करने में जो आनंद मिलता है। उसे सिर्फ वो ही समझ सकते हैं। दूसरे इस आनंद आ मजा नहीं ले सकते हैं। सूरदास इस आनंद का वर्णन नहीं कर सकता है।

अब कै माधन मोहिं उधारि।
मगन हौं भाव अम्बुनिधि में कृपासिन्धु मुरारि।।
नीर अति गंभीर माया लोभ लहरि तरंग।
लियें जात अगाध जल में गहे ग्राह अनंग।।
मीन इन्द्रिय अतिहि काटति मोत अघ सिर भार।
पग न इत उत धरन पावत उरझि मोह सिबार।।
काम क्रोध समेत तृष्ना पवन अति जकझोर।
नाहिं चितवत देह तियसुत नाम-मौका ओर।।
थक्यौ बीच बेहाल बिह्वल सुनहु करुनामूल।
श्याम भुज गहि काढि डारहु सूर ब्रज के कूल।।

हिंदी अर्थ :- इस दोहे में सूरदास श्री कृष्ण से कहते हैं कि मेरा उदार कर दो। इस संसार पूरे में माया रूपी जल भरा हुआ है। इस जल में लालच रुपी लहरें हैं। कामवासना रुपी मगरमच्छ भी है। इन्द्रियां मछलियों के समान है। मेरे सर पर कई पापों की गठरी रखी पड़ी है।

मेरे इस जीवन में कई प्रकार का मोह भरा हुआ है। काम और क्रोध की हवा मुझे बहुत परेशान करती है। इसलिए मुझे इस माया से श्री कृष्ण के नाम की ही नाव बचा सकती है। पत्नी और बेटों का मोह मुझे किसी और की तरफ देखने ही नहीं देता है। इस कारण अब श्री कृष्ण ही मेरा बेड़ा पार लगा सकते हैं।

आजु हरि धेनु चराए आवत।
मोर मुकुट बनमाल बिराज पीतांबर फहरावत।।
जिहिं जिहिं भांति ग्वाल सब बोलत सुनि स्त्रवनन मन राखत।
आपुन टेर लेत ताही सुर हरषत पुनि पुनि भाषत।।
देखत नंद जसोदा रोहिनि अरु देखत ब्रज लोग।
सूर स्याम गाइन संग आए मैया लीन्हे रोग।।

हिंदी अर्थ :- भगवान् बालकृष्ण जब पहले दिन गाय चराने वन में जाते है, उसका अप्रतिम वर्णन किया है सूरदास जी ने अपने इस पद के माध्यम से। यह पद राग गौरी में बद्ध है। आज प्रथम दिवस श्रीहरि गौओं को चराकर आए हैं। उनके शीश पर मयूरपुच्छ का मुकुट शोभित है, तन पर पीतांबरी धारण किए हैं।

गायों को चराते समय जिस प्रकार से अन्य ग्वाल-बाल शब्दोच्चारण करते हैं उनको श्रवण कर श्रीहरि ने हृदयंगम कर लिया है। वन में स्वयं भी वैसे ही शब्दों का उच्चारण कर प्रतिध्वनि सुनकर हर्षित होते हैं। नंद, यशोदा, रोहिणी व ब्रज के अन्य लोग यह सब दूर ही से देख रहे हैं। सूरदास कहते हैं कि जब श्यामसुंदर गौओं को चराकर आए तो यशोदा ने उनकी बलैयां लीं।

Surdas Ka Jivan Parichay


सूरदास का जीवन परिचय :- महाकवि सूरदास को श्री कृष्ण का परम भक्त माना जाता है। 

महाकवि सूरदास का जन्म 1478 में श्री नाम के गांव में हुआ था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार सूरदास जी का जन्म ब्रज में हुआ मानते हैं। 

सूरदास जी जन्म से ही अंधे थे लेकिन उन्होंने जिस तरह से इस संसार को देखा और भगवान श्री कृष्ण के व्यक्तित्व के बारे में जनमानस को परिचय करवाया ऐसा आंखों वाले भी नहीं कर सकते । सूरदास जी का जन्म बहुत गरीब परिवार में हुआ था और उन्होंने 6 वर्ष की आयु में ही अपना परिवार को त्याग दिया था। सूरदास जी एक महान संत, संगीतकार और कवि थे। 

सूरदास जी ने अपने जीवन काल में भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन होकर अनेक दोहो, धार्मिक भजनों, कविताओं व ग्रंथों की रचना की। 

सूरदास जी की प्रमुख रचनाएं जैसे सूरसागर, सुर सरावली, साहित्य लहरी, नल दमयंती इत्यादि है। 

सन 1580 में गोवर्धन पर्वत के निकट पारसोली गांव में 102 वर्ष की आयु में महाकवि सूरदास ने अपनी अंतिम सांस ली। जिस स्थान पर सूरदास जी की जीवन यात्रा समाप्त हुई थी वहां पर सूर श्याम मंदिर बनाया गया है। 

यह भी पढ़ें –

100+ Flowers Name In Hindi And English | फूलों के नाम

70+ Teachers Day Quotes In Hindi | शिक्षक दिवस बधाई सन्देश

राम शब्द रूप | Ram Shabd Roop In Sanskrit

50 Colours Name In Hindi And English | रंगों के नाम

हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखा गया Surdas Ke Dohe आपको पसंद आयी होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

Leave a Comment