Poshan Kise Kahate Hain : प्रिय मित्रों आज हम आपको पोषण के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में पोषण किसे कहते है(Poshan Kise Kahate Hain), पोषण के प्रकार, पादपों में पोषण, पोषक तत्व इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Poshan Kya Hai की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा।
हमारा यह लेख कक्षा 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Nutrition Kya Hai लिखा है।
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Poshan Kise Kahate Hain In Hindi
पोषण किसे कहते है (Poshan Kise Kahate Hain) :- पादपों तथा जीवो में वर्द्धी विभिन्न क्रियाओं एवं जीवन चक्र को पूरा करने हेतु बाहर से पदार्थों का अंतर ग्रहण एवं उपयोग करना पोषण कहलाता है।
तथा जिन पदार्थों को ग्रहण किया जाता है उसे पोषक पदार्थ कहते हैं।
पादपों में पोषण :- पादप अपनी वर्द्धी कथा अपने जीवन चक्र को पूरा करने के लिए कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण करते हैं। उसे पादपों में पोषण कहते हैं।
Poshan Ke Prakar
पोषण के आधार पर पादप दो प्रकार के होते हैं।
- परपोषी पादप :- ऐसे पादप जो अपने पोषण है हेतु कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण स्वयं करते हैं। परपोषी पादप कहलाते हैं।
- स्वपोषी पादप :- ऐसे पादप जो अपनी पोषण हेतु कार्बनिक पदार्थों का संश्लेषण हेतु अकार्बनिक पदार्थ है। बाह्य स्रोतों से प्राप्त करते हैं। स्वपोषी पादप कहलाते हैं।
पादपों के लिए खनिज पोषण तथा आवश्यकता को तीन प्रयोगों से सिद्ध किया जाता है।
- पादप भ्ष्म विश्लेषण :- इस विधि में एक ताजा पादप को ओवन में या ताप भट्टी में 70 से 80 डिग्री सेल्सियस ताप पर 1 से 2 दिन तक गर्म किया जाता है। जिससे पादप में उप समरसता जल वाष्पीकृत होकर उड़ जाता है। बचे हुए भाग को तोलकर पादप का भार ज्ञात कर लिया जाता है जो पादप का शुष्क भार कहलाता है।
शुष्क भाग लेने के बाद पादप को भट्टी में लगभग 6000 डिग्री सेल्सियस ताप पर जलाया जाता है। जिससे शुष्क पादप में से कुछ अन्य वाष्पशील पदार्थ है जैसे अमोनिया व ऑक्सीजन भी वाष्पित हो जाते हैं। अब जो पदार्थ बचता है उसे पादप राख कहते है।
- बालू संवर्धन :- इस विधि में बालू मिट्टी लेकर उसे हाइड्रोक्लोरिक अम्ल द्धारा धोकर निर्जलीकरण एवं खनिज रहित किया जाता है। तत्पश्चात मिट्टी को जाल में धोकर सिखाया जाता है। इसके बाद मिट्टी को अलग-अलग गमलों में लेकर पौधे लगाए जाते हैं। जिसमें कुछ पौधों की सभी खनिज तत्व पानी में घोल कर दिए जाते हैं। जबकि अन्य पौधों को नियंत्रित रूप से अलग-अलग मात्रा में खनिज तत्व दिए जाते हैं। पादपों में दिए खनिज तत्वों के न्यूनता के लक्षणों का अध्ययन किया जाता है। जिससे तत्वों की आवश्यकता सिद्ध हो जाती है।
- जल संवर्धन :- खनिज तत्वों की पादपों हेतु आवश्यकता को समझने के लिए जल संवर्धन विधि में पौधों की जड़ों को पोषक घोल में रखा जाता है। अथवा जड़ों को ऑक्सीजन प्राप्त करने हेतु एयरेटर से ऑक्सीजन प्रवाहित की जाती है। इस विधि को हाइड्रोपोनिक्स भी कहते हैं। इस घोल में उपस्थित पोषक तत्वों की उपस्थिति के अनुसार उनकी आवश्यकता का विश्लेषण किया जाता है।

Poshak Tatva
पादपों के लिए आवश्यक अनिवार्य पोषक तत्व या खनिज तत्व :- प्रकृति में कुल 118 तत्व पाए जाते हैं जिनमें से 60 तत्व पादपों में पाए जाते हैं। इन 60 तत्वों में से भी केवल 17 तत्व पादपों की वृद्धि एवं विकास के लिए आवश्यक होते हैं। अत: इन 17 तत्वों को अनिवार्य तत्व भी कहा जाता है। तथा शेष अनआवश्यक तत्व कहलाते है।
पादपों में आवश्यक मात्रा के आधार पर अनिवार्य तत्व को भी दो प्रकार के होते हैं।
- वृहद मात्रिक पोषक तत्व :- वे तत्व जिनकी मात्रा पादप के 1 ग्राम शुष्क भाग में 1 mg-10 mg/प्रतिग्राम वह तो उन्हें वृहद मात्रक पोषक तत्व कहा जाता है। इन्हें प्रधान तत्व अथवा गुरु पोषक तत्व भी कहा जाता है। इनकी संख्या 9 होती है।
- सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व :- ऐसे तत्व जिन की मात्रा पादप के 1 ग्राम शुष्क भार में एक मिलीग्राम से कम हो तो उसे सूक्ष्म मात्रिक पोषक तत्व कहते हैं। इन्हें गोन तत्व अथवा प्रधान तत्व भी कहा जाता है। इनकी संख्या आठ होती है।
कार्य एवं उपयोग के आधार पर तत्वों के प्रकार :- इस आधार पर तत्व चार प्रकार के होते हैं।
- संरचनात्मक तत्व
- ऊर्जा से संबंधित तत्व
- एंजाइम से संबंधित तत्व
- अन्य तत्व
संरचनात्मक तत्व :- कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन तथा नाइट्रोजन पादपों में विभिन्न कार्बनिक पदार्थों के निर्माण में संरचनात्मक घटक होते हैं। जैसे – कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन आदि के घटक।
ऊर्जा से संबंधित तत्व :- कुछ अनिवार्य तत्व ऊर्जा से संबंधित है यौगिकों के निर्माण में प्रयुक्त होते हैं। जैसे फास्फोरस ATP के निर्माण तथा मैग्नीशियम तत्व क्लोरोफिल के निर्माण में उपयोगी होता है।
एंजाइम से संबंधित तत्व :- कुछ तत्व विभिन्न एंजाइमों के सक्रियण एवं निरोधक के रूप में कार्य करते हैं। जैसे मैग्नीज, मैग्नीशियम, जिंक इत्यादि।
अन्य तत्व :- कुछ तत्व जैसे पोटेशियम एवं क्लोरीन ए पादप कोशिकाओं में परासरण सांद्रता का नियमन करते हैं। जैसे रंध्र की द्वार कोशिकाओं में पोटेशियम आयन तत्व परासरण सांद्रता का नियमन करता है।
विभिन्न अनिवार्य तत्वों की पादपों के लिए अनिवार्यता एवं इनकी न्यूनता के लक्षण :-
अनिवार्यता :- विभिन्न पोषक तत्व पादपों की विभिन्न जैव रासायनिक क्रियाओं के लिए महत्वपूर्ण होते हैं। जैसे कोशिका झिल्ली की परगमयता तथा परासरण सांद्रता नियंत्रण एवं अन्य अनेक क्रियाओं का नियंत्रण विभिन्न पोषक तत्वों द्वारा होता है।
तत्वों की न्यूनता के लक्षण :-
- कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन :- ये तीनों अखनीज तत्व हैं। तथा यह पादप के विभिन्न पदार्थों के संरचनात्मक घटक होते हैं।
पादपों में प्राय इनकी न्यूनता नहीं होती है। और यदि होती है तो पादप की वृद्धि और विकास रुक जाता है।
- नाइट्रोजन :- पादपों को नाइट्रोजन की सर्वाधिक मात्रा में आवश्यकता होती है। जिस का स्रोत वायुमंडलीय नाइट्रोजन है। परंतु पादप नाइट्रोजन को मृदा से ग्रहण करते हैं।
नाइट्रोजन की न्यूनता के लक्षण :- नाइट्रोजन की न्यूनता के निम्न लक्षण है।
- पर्णहरित के अपघटन से अन्योस्कीनीन ने वर्णक बनने के कारण पत्तियां गुलाबी रंग की हो जाती हैं।
- पादप बौने रह जाते हैं।
- पार्श्व कलिकाओं की वर्द्धी रुक जाती है।
खनिज लवणों के अवशोषण की क्रियाविधि
खनिज लवणों के अवशोषण की क्रियाविधि :- यह माना जाता है कि खनिज लवणों का अवशोषण जल अवशोषण के साथ ही होता है। परंतु यह पूर्णता से सिद्ध हो चुका है। कि जल अवशोषण एवं खनिज लवण अवशोषण दोनों अलग-अलग क्रियाएं है। खनिज लवणों के अवशोषण में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह एक सक्रिय क्रिया होती है। खनिज लवणों का अवशोषण निम्न दो विधियों से होता है।
- निष्क्रिय अवशोषण
- सक्रिय अवशोषण
निष्क्रिय अवशोषण :- इसके अनुसार खनिज आयन उनके विद्युत रासायनिक विभव प्रवणता के आधार पर बिना ऊर्जा खर्च किए कोशिका में प्रवेश करते हैं। अथवा अवशोषित करते हैं। इसके तीन सिद्धांत दिए गए हैं।
- सहती प्रवाह परिकल्पना :- इसके अनुसार पादपों में वाष्पोत्सर्जन खिंचाव के कारण जल अवशोषण के साथ ही खनिज लवणों का अवशोषण भी होता है।
- आयन विनिमय सिद्धांत :- इसके अनुसार जड़ की सतह एवं बाह्य घोल मृदा घोल के बीच निश्चित संख्या में आयनों का आदान-प्रदान होता है। जिसे आयन विनिमय कहते हैं। विनिमय की क्रिया समाना आयनों के बीच अर्थात धनायन का धनायन तथा ऋण आयन का ऋण आयन के साथ होता है।
- डोमन साम्यावस्था सिद्धांत :- यह सिद्धांत डोमन द्वारा सन 1927 में प्रतिपादित किया गया। इसमें आयनो का प्रवाह सांद्रता प्रवणता के विपरीत दिशा में होता है। तथा यह सिद्धांत अविसरणसिल एवं स्थिर आयनों पर लागू होता है।
सक्रिय अवशोषण :- इस प्रकार के अवशोषण में खनिजों का अवशोषण विद्युत रासायनिक विभव प्रवणता के विपरीत होता है। अतः इसमें ATP के रूप में ऊर्जा खर्च होती है। इसको समझाने हेतु तीन सिद्धांत अथवा परिकल्पना दी गई है।
- बाह्य संकल्पना :- इस सिद्धांत के अनुसार दो प्रकार के दिक स्थान आयन विनिमय में उपयोगी होते हैं। किसी उत्तक का वह भाग जिसमें आयनो का अवशोषण होता है। एवं ऊर्जा खर्च होती है। तो ऐसे स्थान को आंतरिक दिक स्थान कहते हैं। जबकि कोशिका व उत्तक के बाहर का वह स्थान जिसमें आयनो का विसरण स्वतंत्र पूर्वक होने देता है। बाह्य दिक स्थान कहलाता है। इस सिद्धांत के अनुसार खनिज अवशोषण वाहको की सहायता से होता है। वाहक बाह्य दिक स्थान मैं आयनो को अपने साथ जोड़कर आंतरिक दिकस्थान में मुक्त करते हैं।
- आयन पंप अथवा साइटोक्रोम संकल्पना :- इसका प्रतिपादन लुंडेगार्थ द्वारा 1933 में की थी। इस सिद्धांत के अनुसार धनायन एवं ऋण आयन का अवशोषण अलग-अलग प्रकार से होता है। जिसमें ऋण आयनो का अवशोषण अवरोधक झिल्ली से बाहरी सतह से आंतरिक सतह पर साइटोक्रोम द्वारा होता है। अतः इसे साइटोक्रोम पंप संकल्पना कहा जाता है। इसके विपरीत धनायन का स्थानांतरण निष्क्रिय प्रवाह द्वारा होता है।
- विद्युत रासायनिक प्रवणता संकल्पना :- सिद्धांत का प्रतिपादन पीटर माइकल द्वारा 1968 में किया गया। इसके अनुसार ऋण आयन का अवशोषण अवरोधक झिल्ली की बाहरी एवं भीतरी सतह पर उत्पन्न विद्युत रासायनिक प्रवणता के कारण होता है। जिसमें एंजाइम की अहम भूमिका होती है।
- वर्मिकुलाइट :- वर्मिकुलाइट एक खनिज होता है। जिसका उपयोग पादप संवर्धन हेतु किया जाता है। इसे विशेष भट्टी में 2000 डिग्री फॉरेनहाइट पर जलाकर विशेष उत्पाद तैयार किया जाता है। जिसका उपयोग पादप संवर्धन हेतु करते हैं। इसमें निम्न विशेष गुण पाए जाते हैं।
- यह कम भारी पदार्थ होता है।
- मिट्टी की तुलना में इसमें जल अवशोषण की क्षमता अधिक होती है।
- इसकी बनावट ढीली होने के कारण मूल तंत्र का विकास अधिक होता है।
- इसका विघटन नहीं होता है अतः इसमें एक के बाद एक फसलें लगातार उगाई जा सकती हैं।
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