Parasaran Kya Hai : प्रिय मित्रों आज हम आपको परासरण के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में परासरण क्या है, परासरण के प्रकार, परासरण का महत्व, विसरण, विसरण का महत्व इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Parasaran Kise Kahate Hain की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा।
हमारा यह लेख कक्षा 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Osmsis In Hindi लिखा है।
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Parasaran Kya Hai In Hindi
परासरण क्या है :- विलायक अथवा जल के अणुओं का अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा अपनी उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर अभिगमन होता है। इस प्रक्रिया को परासरण कहते हैं।
अथवा
अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा विलायक के अंगो का उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर गमन परासरण कहलाता है।
अथवा
अर्ध पारगम्य झिल्ली से विलायक के अणुओं का विसरण परासरण कहलाता है।
Parasaran Ke Prakar
परासरण के प्रकार :- परासरण दो प्रकार के होते हैं।
- अंतः परासरण
- बही परासरण
अंतः परासरण :- जब किसी कोशिका को अल्प पराश्रित विलयन में डाला जाता है तो जल के अणु अल्प पराश्रित विलयन से कोशिका रस में प्रवेश करते हैं। इस क्रिया को अंतः परासरण कहा जाता है। उदाहरण के लिए किसमिस को जल में डालने पर खुलना।
Note – अल्प परासरी विलयन वह विलयन होता है जिसकी संद्रता कोशिका रस की सांद्रता से कम होती है।
बही परासरण :- यदि किसी कोशिका को अति परासरित विलयन में डाला जाता है तो जल के अणु कोशिका रस से विलयन में प्रवेश करते हैं अर्थात कोशिका से बाहर निकलते हैं। इस प्रक्रिया को बही परासरण कहते हैं। उदाहरण के लिए अंगूर अथवा कोशिका का सिकुड़ना।
Note – ऐसा विलयन जिसकी सांद्रता कोशिका रस की सांद्रता से अधिक हो तो उसे अति परासरी विलयन कहते हैं।
जब कोशिका रस की सांद्रता एवं विलयन की क्षमता समान होती है तो ऐसे विलयन को सम परासरी विलयन कहते हैं। जिसमें कोशिका को रखने पर किसी प्रकार का परासरण नहीं होता है।
- परासरण का प्रयोग :- उल्टा थिसिल कीप विधि में एक जार में पानी लेते हैं तथा एक थिसिल कीप के मुख पर चर्म पत्र या अर्ध पारगम्य झिल्ली अथवा गोट ब्लैडर बांधकर एक निश्चित बिंदु तक शर्करा का सांद्र घोल भर देते हैं। तथा उसे जल के जार में स्टैंड के ऊपर उल्टा लटका देते हैं। कुछ समय बाद थिसिल कीप में विलयन का बढ़ा हुआ स्तर पाया गया। जिससे यह सिद्ध होता है कि यहां अर्ध पारगम्य झिल्ली द्वारा अंतः परासरण के कारण है जल के अणुओं का थिसिल कीप में प्रवेश हुआ है।

Parasaran Ka Mahatva
परासरण का महत्व :- परासरण का निम्न महत्व है।
- मूल रोम द्वारा मृदा से जल का अवशोषण अंतः परासरण द्वारा होता है।
- पादप में एक कोशिका से दूसरी कोशिका में जल का विसरण परासरण क्रिया द्वारा होता है।
- कोशिकाओं की फूली हुई अवस्था परासरण के कारण ही होती है। जिससे पत्तियों एवं अन्य अंगों का आकार बना रहता है।
- पादप के विभिन्न अंगों तक के जल का विसरण भी परासरण द्वारा ही होता है।
- कोशिका विभाजन के पश्चात है कोशिकाओं में वर्दी भी परासरण द्वारा प्रभावित होती है। अंतः परासरण के कारण है कोशिकाओं में आवश्यक जल की पूर्ति होने से कोशिकाएं हिम्मीकरण एवं शुष्कन के प्रति प्रतिरोधी हो जाती हैं।
Diffusion In Hindi
विसरण :- ठोस द्रव और गैस के अणुओं का अपनी उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर मुक्त माध्यम में साम्यावस्था की प्राप्ति तक अभिगमन विसरण कहलाती है।
अथवा
ठोस द्रव और गैस के अणुओं का मुक्त माध्यम में अपनी उच्च सांद्रता से निम्न सांद्रता की ओर अभिगमन विसरण कहलाता है।
नोट – विसरण क्रिया विसरित होने वाले पदार्थ के अणुओं की गतिज ऊर्जा के कारण होती है।
उदाहरण के लिए लाल दवा को पानी के टैंक में एक कोने में डालने पर पूरे पानी में फैलना।
अगरबत्ती इत्र आदि को कमरे में एक कोने में होने पर विसरण द्वारा खुशबू का पूरे कमरे में फैलना।
विसरण को प्रभावित करने वाले कारक :- मिश्रण को प्रभावित करने वाले निम्न कारक है।
- तापमान :- तापमान बढ़ने पर विसरण की गति बढ़ती है। क्योंकि तापमान बढ़ने से अणुओं की गतिज ऊर्जा बढ़ती है।
- विसरित होने वाले पदार्थ का घनत्व :- ग्राहम के विसरण नियम के अनुसार विसरण कि दर विसरित होने वाले पदार्थ के घनत्व के वर्गमूल के व्युत्क्रमानुपाती होता है। अर्थात घनत्व जितना अधिक होगा विसरण कि दर उतनी ही कम होगी।
- विसरण दाब प्रवणता :- विसरण क्रिया में वितरित होने वाले अनु सदैव उच्च सांद्रता अथवा उच्च विसरण दाब क्षेत्र से निम्न सांद्रता अथवा निम्न विसरण दाब क्षेत्र की ओर गति करते हैं। इस प्रक्रिया को विसरण दाब प्रवणता कहते हैं। अर्थात् विसरण क्रिया सदैव विसरण दाब प्रवणता की दिशा में ही होती है।
विसरण का महत्त्व :- पादपों में अनेक क्रियाएं विसरण द्वारा संपन्न होती हैं जो निम्न है।
- पादपों तथा वायुमंडल के बीच ऑक्सीजन और कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान विसरण के कारण होता है।
- वायुमंडल में जलवाष्प का उत्सर्जन अर्थात वाष्पोत्सर्जन की क्रिया विसरण के कारण होती है।
- पादपों में जल का निष्क्रिय अवशोषण है विसरण अथवा वाष्पोत्सर्जन के कारण उत्पन्न विसरण दाब न्यूनता के कारण होता है।
पारगम्यता :- किसी झिल्ली से विलय अथवा विलायक के कणों का एक माध्यम से दूसरे माध्यम में पारगमन पारगम्यता कहलाता है।
पारगम्यता के आधार पर झिल्ली चार प्रकार की होती है।
- अपारगम्य झिल्ली
- चयनात्मक पारगम्य झिल्ली
- अर्ध पारगम्य झिल्ली
- पूर्ण पारगम्य झिल्ली
अपारगम्य झिल्ली :- एसी परत या झिल्ली जिसमें से विलेय और विलायक दोनों के करें पार गमित नहीं हो सकते हैं। उसे अपारगम्य झिल्ली कहा जाता है।
चयनात्मक पारगम्य झिल्ली :- ऐसी झिल्ली जो विलायक के अणुओ के लिए अधिक पारगम्य में तथा विलये के अणुओं के लिए कम पारगम्य होती है। अर्थात विलय के कणों का चयन के आधार पर पारगम्य होता है।
अर्ध पारगम्य झिल्ली :- इस प्रकार की झिल्ली में विलायक के कण तो पाक अमित हो सकते हैं परंतु विलय के कणों के लिए ऐसी झिल्ली पूर्णता अपारगम्य होती है।
Note– प्लाज्मा झिल्ली अर्ध पारगम्य एवं चयनात्मक पारगम्य दोनों प्रकार की प्रकृति प्रदर्शित करती है। प्रमुख रूप से यह चयनात्मक पारगम्य होती है। परंतु आवश्यकता होने पर अर्ध पारगम्य झिल्ली का व्यवहार भी करती है।
पूर्ण पारगम्य झिल्ली :- ऐसी झिल्ली या परत जिसमें से विलेय और विलायक दोनों के कण पारगमित हो सकते हैं ऐसी झिल्ली को पूर्ण पारगम्य झिल्ली कहते हैं।
Parasaran Dab Kya Hai
कोशिका में उत्पन्न विभिन्न प्रकार के दाब :- कोशिका में विभिन्न प्रकार के दाग उत्पन्न होते हैं।
परासरण दाब :- कोशिका में उत्पन्न वह दाब जो शुद्ध विलायक अथवा जल के अणुओं को कोशिका से बाहर स्थित घोल में प्रवेश करने से रोकता है। परासरण दाब कहलाता है।
अथवा
वह दाब जो जल के अणुओं को अर्ध पारगम्य झिल्ली के दूसरी ओर जाने से रोकता है। परासरण दाब विलयन में उपस्थित विलय की मात्रा के समानुपाती होता है।
अर्थात घोल में विलय के अणु की मात्रा संख्या जितनी अधिक होगी परासरण दाब भी उतना ही बढ़ता जाएगा। विलय की मात्रा घटने पर परासरण दाब भी घटता है।
शुद्ध जल का परासरण दाब शून्य होता है।
विसरण दाब :- विसरित होने वाले अणुओं पर लगने वाला दाब विसरण दाब कहलाता है। शुद्ध जल का विसरण दाब उच्चतम या अधिकतम होता है। जबकि विलयन का विसरण दाब सदैव ही शुद्ध जल अथवा विलायक से कम होता है।
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