नाइट्रोजन चक्र क्या है | नाइट्रोजन स्थायीकरण | Nitrogen Cycle In Hindi

Nitrogen Cycle In Hindi : प्रिय मित्रों आज हम आपको नाइट्रोजन चक्र के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में नाइट्रोजन चक्र क्या है, नाइट्रोजन स्थायीकरण, बायोगैस, औद्योगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण, नाइट्रिककरण इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Nitrogen Chakra की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा। 

हमारा यह लेख कक्षा 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Nitrogen Chakra Kya Hai लिखा है।

What Is Nitrogen Cycle In Hindi


नाइट्रोजन का परिचय :- नाइट्रोजन वायुमंडल में सर्वाधिक मात्रा में 78% पाई जाने वाली गैस है। 

  • नाइट्रोजन जीव द्रव्य में पाए जाने वाले प्रोटीन, एमिनो अम्ल, एंजाइम, विटामिंस एवं न्यूक्लिक अम्ल का प्रमुख घटक होते हैं। 
  • पादप वायुमंडल में उपस्थित गैसीय नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर सकते। बल्कि यह नाइट्राइट अथवा नाइट्रेट तथा कार्बनिक नाइट्रोजन के रूप में उपयोग करते हैं। इस हेतु पादप केवल मृदा से नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। 
  • विभिन्न सूक्ष्म जीव जैसे जीवाणु कवक के एवं नील हरित शैवाल वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थायीकरण करके नाइट्राइट अथवा नाइट्रेट का निर्माण करते हैं। जो पादपों द्वारा मृदा से अवशोषित करके विभिन्न नाइट्रोजनिक कार्बनिक पदार्थ में बदल जाते हैं। 
  • पादप चार प्रकार के नाइट्रोजनिक यौगिक क्रमश: नाइट्राइट, नाइट्रेट, अमोनिया तथा नाइट्रोजनी कार्बनिक पदार्थ के रूप में प्रयोग करते हैं। 

नाइट्रोजन चक्र (Nitrogen Cycle In Hindi) :- वायुमंडलीय नाइट्रोजन का विभिन्न विधियों द्वारा नाइट्रोजन पदार्थों में बदलना अमोनिकरण, नाइट्रिककरण द्वारा नाइट्रेट में बदलना तथा नाइट्रेट का दुबारा विनाइट्रिककरण द्वारा नाइट्रोजन में बदलना नाइट्रोजन चक्र कहलाता है। जो कि एक चक्रीय प्रक्रम है। यह प्रकृति में निरंतर चलता रहता है। 

Nitrogen Cycle In Hindi

Nitrogen Fixation In Hindi


नाइट्रोजन स्थायीकरण अथवा नाइट्रोजन चक्र :- वायुमंडल नाइट्रोजन को विभिन्न नाइट्रोजन इन पदार्थों में बदलना एवं उनका उपयोग है विभिन्न जीवो द्वारा करने के बाद नाइट्रोजन पुन: वातावरण में मुक्त होना एक चक्रीय प्रक्रम है। जिसे नाइट्रोजन चक्र कहते हैं। 

नाइट्रोजन चक्कर निम्नलिखित 4 चरणों में संपन्न होता है। 

  • नाइट्रोजन स्थिरीकरण :- वायुमंडलीय मुक्त नाइट्रोजन का नाइट्रोजन युक्त यौगिकों में बदलने की प्रक्रिया नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाती है। अथवा वायुमंडलीय नाइट्रोजन का सूक्ष्म जीव अथवा अजैविक कार को द्वारा नाइट्रोजन यौगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहलाता है। 

 अजैविक नाईट्रोजन स्थिरीकरण :- इस प्रकार के नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सूक्ष्म जीव भाग नहीं लेते हैं। बल्कि नाइट्रोजन स्थिरीकरण वायुमंडल कारको द्वारा होता है। 

यह दो प्रकार का होता है। 

  • वायुमंडलीय नाइट्रोजन स्थिरीकरण :- जब नाइट्रोजन स्थिरीकरण वायुमंडलीय कारको जैसे पराबैंगनी किरणें तथा आकाशीय तड़ित के प्रभाव से संपन्न होता है। यह क्रिया निम्न दो प्रकार की होती है। 

मेघ गर्जना के समय तड़ित चमकने अथवा के प्रभाव से मुक्त नाइट्रोजन ऑक्सीजन से क्रिया करके नाइट्रिक ऑक्साइड बनाती है। 

नाइट्रोजन ऑक्साइड दोबारा ऑक्सीजन के साथ संयोजित होकर नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का निर्माण करती है। 

नाइट्रोजन डाइऑक्साइड इन जल से अभिक्रिया करके नाइट्रिक अम्ल का निर्माण करती हैं। 

नाइट्रिक अम्ल तथा नाइट्रस अम्ल वर्षा जल के साथ है मृदा में चले जाते हैं जहां क्षारीय पदार्थों के साथ किया करके नाइट्रेट का निर्माण करते हैं। जो पादपो द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। 

भौतिक/औद्योगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण :- इस प्रकार का नाइट्रोजन स्थिरीकरण हेबर विधि द्वारा होता है। जिसमें औद्योगिक स्तर पर उच्च दाब उच्च ताप एवं उत्प्रेरक की उपस्थिति में नाइट्रोजन हाइड्रोजन के बीच क्रिया करवा कर अमोनिया प्राप्त की जाती है। जिसका उपयोग रासायनिक उर्वरक के निर्माण में किया जाता है। 

जैविक नाईट्रोजन स्थिरीकरण :- नाइट्रोजन स्थिरीकरण सूक्ष्म जीव द्वारा वायुमंडल नाइट्रोजन को कार्बनिक अथवा अकार्बनिक नाइट्रोजन यौगिकों में बदलने की प्रक्रिया जैविक नाइट्रोजन स्तरीकरण कहलाती है। 

जैविक नाइट्रोजन स्थिरीकरण दो प्रकार का होता है। 

  • असहजीवी :- इस प्रकार का नाइट्रोजन स्थिरीकरण स्वतंत्र जीव सूक्ष्म जीव द्वारा होता है। जिनका पादप के साथ सहजीवी संबंध नहीं पाया जाता है। 
  • वायविय असहजीवी :- यह वायविय असहजिवी जीवाणु द्वारा होता है। 
  • अवायवीय असहजीवी :- यह अवयवीय असहजीवी जीवाणु द्वारा होता है। 
  • नील हरित शैवाल द्वारा :- इसके अंतर्गत सायनोफैसी वर्ग के नील हरित शैवाल नाइट्रोजन स्थायीकरण में भाग लेते हैं। जिन में नाइट्रो स्तरीकरण में हेतु विशेष प्रकार की कोशिकाएं पाई जाती हैं। 

उपरोक्त के अतिरिक्त कुछ कवक यीस्ट एवं कुछ प्रकाश संश्लेषण जीवाणु जैसे क्लोरोबियम असहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण में भाग लेते हैं। 

सहजीवी :- इस प्रकार के नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सूक्ष्म जीवों एवं पादपों के बीच सहजीवी संबंध पाया जाता है। अतः इसे सहजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकरण कहा जाता है। इसके अंतर्गत है विभिन्न पादपों में सूक्ष्म जीवों की क्रिया द्वारा मूल गुलिका या ग्रंथियों का निर्माण होता है। 

गुलिका निर्माण में विभिन्न जीवाणु भाग लेते हैं।

लेज्यूम पादपों में ग्रंथि निर्माण की प्रक्रिया :- लेज्युम पादपों की जड़ों में राइजोबियम में जीवाणु ग्रंथि बनाता है। जिसका निर्माण निम्न चरणों में होता है। 

  • सर्वप्रथम ग्राम पॉजीटिव बैक्टीरिया राइजोबियम मूल की जड़ों द्वारा स्रावित विशिष्ट ग्लाइकोप्रोटीन लैट्रिन के द्धारा आकर्षित होकर भी मूल रोम में संपर्क में आता है। 
  • दूसरे चरण में जीवाणुओं द्वारा नोट कारक है एवं मूल द्वारा साइटोकिनिन है आदि के प्रभाव से मूल रोम कुंतलिट हुक नुमा हो जाते हैं।
  • तीसरे चरण में मूल रोम के कुंदन से ऊपरी भित्ति में दरारे बन जाती हैं जिनमें से राइजोबियम मुलरोम में प्रवेश कर जाते हैं। तथा बेल्टीराइड कहलाते हैं। 

बेक्टी राइट के प्रभाव से मूल रोम की आंतरिक झिल्ली संक्रमण तंतु बनाती है। जिसके साथ जीवाणु मूल के वल्कुट में प्रवेश कर जाते हैं। तथा वल्कुट कोशिका के डीएनए में बहुगुणा द्वारा बहु गणित कोशिकाएं बनाते हैं। यह कोशिकाएं सतत विभागों द्वारा गठनूमा सरंचना गुलिका अथवा ग्रंथि बनाती है। 

ग्रंथि का रंग जीवाणु की परी कला में उपस्थित लेग हिमोग्लोबिन में वर्णक के कारण गुलाबी रंग की हो जाती है। 

नाइट्रिककरण :- अमोनीकरण के दौरान है निर्मित अमोनिया का नाइट्राइट तथा नाइट्रेट में बदलना नाइट्रिक करण कहलाता है। 

अमोनिया का नाइट्रेट में ऑक्सीकरण  नाइट्रिकरन कहलाती है। 

यह अभिक्रिया 2 चरणों में संपन्न होती है। 

  • पहले चरण में अमोनिया का नाइट्राइट में बदलना – इसके अंतर्गत है अमोनिया नाइट्रोजोमोनास की उपस्थिति में ऑक्सीकरण होकर ऑक्सीजन से क्रिया करके नाइट्रस अम्ल बनाती है। 
  • दूसरे चरण में नाइट्राइट का नाइट्रेट में रूपांतरण – इस क्रिया के अंतर्गत नाइट्रोबैक्टर जीवाणु की उपस्थिति में होती है। जिसमें नाइट्राइट ऑक्सिकृत नाइट्रेट में बदल जाती है। 

 अमोनिकरण :- मृदा में उपस्थित है कार्बनिक पदार्थों के विघटन से अमोनिया तथा अमोनियम यौगिकों के बनाने की प्रक्रिया अमोनी करण कहलाती है। 

यह क्रिया 2 चरणों में संपन्न होती है। 

  • प्रोटीन का अपघटन :- यह अभिक्रिया स्टुडोमोनास जीवाणु की उपस्थिति में होती है। प्रोटीन के अपघटन से एमिनो अम्ल निर्मित होता है। 
  •  विअमीनाकरण :- इस क्रिया में अमोनी कार्य जीवाणु द्वारा एमिनो अम्ल के विघटन से अमोनिया बनती है जो वातावरण में मुक्त हो जाती है। 

विनाइट्रिककरण :- जीवाणु द्वारा मृदा में उपस्थित है नाइट्रेट को दुबारा नाइट्रोजन में बदलने की प्रक्रिया नाइट्रिककरण कहलाती है। यह क्रिया जीवाणुओं बेसिलस एवं फाइव बेसिलस इत्यादि की उपस्थिति में होती है।

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