रासायनिक आबंध क्या है | सिद्धांत | अष्टक नियम | Chemical Bonding In Hindi

Chemical Bonding In Hindi : प्रिय मित्रों आज हम आपको रासायनिक आबंध के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में रासायनिक आबंध क्या है, रासायनिक आबंध के सिद्धांत, अष्टक नियम, सह संयोजक आबंध, उपसहसंयोजक बंध इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Rasayanik Aabandh की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा। 

हमारा यह लेख कक्षा 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Chemical Bond In Hindi लिखा है।

What Is Chemical Bonding In Hindi


रासायनिक आबंध किसे कहते हैं (Chemical Bonding In Hindi) :- दो या दो से अधिक परमाणु के बीच लगने वाले आकर्षण बल को रासायनिक आबंध कहते है। 

कुछ अणु केवल एक ही प्रकार के परमाणुओं से बनते हैं इन्हें सम नाभिकीय अणु कहते हैं। जैसे :- H2, Cl2, O2 इत्यादि

कुछ अणु अलग-अलग प्रकार के परमाणुओं से बनते हैं उन्हें विषम नाभिकीय अणु कहते हैं। जैसे :- Co, No इत्यादि विषम नाभिकीय द्विपरमाणु है। 

रासायनिक आबंध के सिद्धांत :- इस सिद्धांत का प्रतिपादन कासेता तथा लुईस द्वारा सन 1916 में किया गया था। 

लुईस ने परमाणुओं को एक घन आवेशित अष्टि तथा  बाह्य कक्षको जिनमें अधिकतम 8 इलेक्ट्रोन समाहित हो सकते हैं के रूप में बताया। उन्होंने यह भी बताया कि साथी इलेक्ट्रॉन घन के आठों कौनो पर स्थित होते है। जो केन्द्रीय अष्ट को चारों ओर से घेरते हैं। उत्कृष्ट गैसों में घन के आठों कोनो पर एक – एक इलेक्ट्रॉन स्थित होता है। 

इलेक्ट्रॉन का यह अष्टक एक स्थाई विन्यास को निरूपित करता है। 

उत्कृष्ट गैसों के परमाणु अक्रिय तथा स्थाई होते हैं। कासेता तथा लुईस ने यह माना कि उत्कृष्ट गैसों का यह स्थाईत्व उनकी बह्यतम कोश में आठ इलेक्ट्रॉन की उपस्थिति के कारण होता है। 

संयोजकता इलेक्ट्रॉन :- किसी अणु के बनने में परमाणु के केवल बाह्य कोश के इलेक्ट्रॉन ही रासायनिक का बंधन में भाग लेते हैं। ये बाह्य कोश इलेक्ट्रॉन संयोजकता इलेक्ट्रॉन कहलाते हैं। 

अमरीकी जी. एन. लुईस ने परमाणु में संयोजकता इलेक्ट्रॉन को निरूपित करने के लिए सरल संकेतों को प्रस्तावित किया। जिन्हे लुईस प्रतीक कहा जाता है। 

Astak Ka Niyam


अष्टक नियम व अपवाद :- किसी परमाणु का अपने संयोजकता कोश में अष्टक पूरा कर स्थायित्व प्राप्त करते हैं। इसे अष्टक नियम कहते हैं। 

अष्टक नियम के अपवाद :- अष्टक नियम के निम्न अपवाद हैं। 

  • केंद्रीय परमाणु का अपूर्ण अष्टक :- बहुत से स्थाई से सह संयोजक अणु में सहभाजन के पश्चात भी केंद्रीय परमाणु की बह्यतम कोश में आठ से कम इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। अर्थात अष्टक पूर्ण नहीं होता है। 
  • प्रसारित अष्टक :- आवर्त सारणी में अनेक योगीको को केंद्रीय परमाणु के चारों ओर 8 से अधिक इलेक्ट्रॉन होते हैं। इसे प्रसारित अष्टक कहते हैं। जैसे —SF6, H2SO4 इत्यादि। 
  • ऐसे योगिक जिनमें कुल इलेक्ट्रॉनों की संख्या विषम होती है अष्टक नियम का पालन नहीं करते हैं। 

आयनिक या वैद्युत संयोजी आबंध :- ऋणायन या धनायन के बीच लगने वाले स्थिर वैद्युत बल से ही आबंध का निर्माण होता है। उसे आयनीक या वैद्युत संयोजी आबंध कहते हैं। 

जालक एंथैल्पी :- एक मोल आयनिक यौगिक के निर्माण में मुक्त हुई ऊर्जा को जालक एंथैल्पी कहते हैं। 

जालक ऊर्जा का मान आयनो के आकार तथा आवेश पर निर्भर करता है। 

आयनो का आकार जितना छोटा होगा जालक ऊर्जा का मान उतना ही अधिक होगा। 

आयनो पर आवेश जितना अधिक होगा जालक ऊर्जा का मान भी उतना ही अधिक होगा। 

आयनिक यौगिकों के सामान्य लक्षण :- सामान्यता आयनिक यौगिकों के कठोर, भंगुर तथा क्रिस्टलिए प्रकृति के होते हैं। ये आयन त्रिविम में नियमित तरीके से व्यवस्थित होकर क्रिस्टल जालक का निर्माण करते हैं। 

  • आयनों के क्रिस्टल जालक में सममित व्यवस्था होने के कारण है आयनिक यौगिक ठोस अवस्था में विद्युत की सुचालक होते हैं तथा गलित अवस्था में तथा जलीय अवस्था में आयनिक यौगिक विद्युत के सुचालक होते हैं। 
  • यौगिकों के गलनांक तथा क्वथनांक उच्च होते है। क्योंकि आयनो के बीच प्रबल स्थिर वैद्युत आकर्षण बल होता है। इस कारण इन आयनों को प्रथक करने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। 
  • आयनिक संबंध स्वभाव में जिस आत्मक नहीं होते हैं। यह किसी भी प्रकार की समावयवता नहीं दर्शाते है। 
  • आयनिक अभिक्रियाएं सरल तथा तीव्र गति से होती हैं। जसे — उदासीनीकरण तथा अवक्षेपण। 
  •  विलेयता :- आयनिक यौगिक ध्रुवीय विलायको में घुलनशील होते हैं। तथा अध्रुवीय विलायको में अघुलनशील होते हैं। 

विलेयता को प्रभावित करने वाले कारक :- विलेयता को प्रभावित करने वाले निम्न कारक है। 

  • आयनिक यौगिक ऐसे भी विलायको में घुलनशील होते हैं। जिनका परावैद्युतांक उच्च होता है। जल का परावैद्युतांक उच्च होने के कारण यह आयनिक यौगिकों के लिए अच्छा विलायक है। 
  • धनायन की त्रिज्या स्थिर रखने पर जालक ऊर्जा कमाने ऋणआयन की त्रिज्या बढ़ाने पर कम होता है। 
  • विलायकन ऊर्जा तथा ऋणआयन कि त्रिज्या स्थिर रखने पर विलायक ऊर्जा का मान धनायन की त्रिज्या बढ़ने पर कम होता है। 

जालक ऊर्जा > विलायकन ऊर्जा

आयनिक यौगिक विलयन में विलय नहीं होते हैं।

जालक ऊर्जा < विलायकन ऊर्जा

आयनिक यौगिक विलयन में विलय होंगे

Chemical Bonding In Hindi

Covalent Bond In Hindi


सह संयोजक आबंध :- सन 1919 में लैंगमयूर ने बताया कि दो या दो से अधिक परमाणु आयनो के समान साझे से जो अब बंध बनता है उसे सह संयोजक बंध कहते हैं। 

सरल अणुओं का लुईस निरूपण :- 

  • अणु में संयोजकता इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या सभी परमाणुओं के संयोजकता इलेक्ट्रॉन की संख्या को जोड़ कर ज्ञात की जा सकती है।
  • ऋणायन के लिए प्रति ऋण आवेश एक इलेक्ट्रॉन जोड़ दिया जाता है। तथा धनायन के लिए प्रति धन आवेश घटा दिया जाता है। 
  • अधिकतम विद्युत धनी तत्व को केंद्र में रखकर आधारभूत संरचना की जाती है। उदाहरण :- PCl5 में फासफोर अधिकतम विद्युत धनी तत्व है। 
  • केंद्रीय परमाणु तथा चारों और के परमाणु के बीच एकल बंध बनाने के लिए संयोजकता इलेक्ट्रॉन युग्म रखे जाते हैं। 
  • एकल बंध के लिए दो इलेक्ट्रॉन रखने के बाद बचे हुए इलेक्ट्रॉनों का एकांकी इलेक्ट्रॉन के रूप में को द्विबंध तथा त्रिबंध में काम में लेते हैं। जिससे प्रत्येक परमाणु का अष्टक पूर्ण हो जाए। 

 औपचारिक आवेश :- किसी अणु या आयन के किसी विशेष परमाणु पर उपस्थित आवेश को औपचारिक आवेश कहते हैं। 

[लुईस संरचना में किसी परमाणु पर औपचारिक आवेश] = [मुख्य परमाणु में संयोजक इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या] – [एकांकी युग्म इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या] -½[आबंधी इलेक्ट्रॉन की कुल संख्या]

सह संयोजक योगिक के सामान्य लक्षण :- सह संयोजक योगिक के सामान्य लक्षण निम्न है। 

  • सह संयोजी यौगिक के सामान्यतः गैस या द्रव होते हैं। क्योंकि यह अणु दुर्बल वंडरवॉल बल द्वारा जुड़े होते हैं। कुछ ऊंच आणविक द्रव्यमान वाले अणु ठोस भी होते हैं। 
  • सह संयोजक बंध की प्रकृति दिशात्मक होती है। इस कारण अणु की आकृति निश्चित होती है। तथा समावयवता प्रदर्शित करते हैं। 
  • सहसंयोजक अणु के गलनांक और क्वथनांक निम्न होते हैं। 
  • सह संयोजक योगीक के विद्युत के कुचालक होते हैं। क्योंकि गलित अवस्था में कोई आयन या मुक्त इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। (अपवाद – ग्रेफाइट)
  • सहसंयोजक योगिक के बीच अभिक्रियाएं आणविक तथा धीमी होती हैं। 

उपसहसंयोजक बंध


उपसहसंयोजक बंध :- उपसहसंयोजक बंध में एक परमाणु के द्वारा दो इलेक्ट्रॉनों को दूसरे परमाणु को दिया जाता है। उनके मध्य लगने वाले बंध को उपसहसंयोजक बंध कहते हैं। इसे दाताग्रही आबांध भी कहते हैं। इसे तीर के चिन्ह (→) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। 

जैसे — H3N: + BF3      [H3N:→BF3]

यहां H3N दाता परमाणु है जिस पर धनात्मक होता है। 

तथा BF3 ग्राही परमाणु है जिस पर ऋण आत्मक होता है। 

आबंध प्राचल (Chemical Bonding In Hindi) :-

  • आबंध लंबाई :- किसी अणु में दो परमाणु के नाभिक के मध्य की दूरी को आबंध लंबाई कहते हैं। 

आबंध लंबाई को एगस्टोन (A°) या पिको मीटर (Pm) में मापा जाता है। 

आबंध लंबाई को प्रभावित करने वाले कारक :- आबंध लंबाई को प्रभावित करने वाले कारक निम्न है। 

  • परमाणु का आकार :- किसी भी परमाणु के आबंध लंबाई की लंबाई जितनी अधिक होगी परमाणु का आकार भी उतना ही कम होगा। तथा आबंध लंबाई जितनी कम होगी परमाणु का आकार भी उतना ही कम होगा। 
  • आबंध कोटि :- किसी भी परमाणु की आबंध लंबाई जितनी अधिक होगी आबंध कोटि उतनी ही कम होगी तथा जितनी कम आबंध लंबाई होगी उस परमाणु की उतनी ही अधिक आबंध कोटि होगी। 
  • S-लक्षण :- किसी भी परमाणु की आबंध लंबाई जितनी अधिक होगी S-लक्षण उतने ही कम होगे तथा जितनी कम आबंध लंबाई होगी उस परमाणु की उतनी ही अधिक S-लक्षण होगे। 

 आबंध ऊर्जा :- किसी अणु में दो परमाणुओं के बीच में बनाने वाले आबंध को तोड़ने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उस उर्जा को आबंध ऊर्जा कहते हैं।

आबंध ऊर्जा को KJ/mol इकाई में व्यक्त करते हैं। 

आबंध कोण :- ऐसी अणु जिनमें दो या दो से अधिक परमाणु होते हैं दो निकटतम आबंदों के मध्य स्थित कोण को आबंध कोण कहते हैं।  

  • आबंध कोण को डिग्री के रूप में व्यक्त करते हैं। 
  • आबंध कोण संकरण अवस्था पर निर्भर करता है। 
  • यह अणु या आयन की प्रकृति ज्ञात करने में सहायक होता है। 

आबंध कोटि :- किसी अणु में दो परमाणुओं के मध्य आबंदों की संख्या आबंध कोटि कहलाती है। 

जैसे – H2 सहभजित इलेक्ट्रॉन युग्म है। आबंध कोटि – 1

किसी भी परमाणु की आबंध लंबाई जितनी अधिक होगी आबंध कोटि उतनी ही कम होगी तथा जितनी कम आबंध लंबाई होगी उस परमाणु की उतनी ही अधिक आबंध कोटि होगी। 

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